पत्थर बांध रखे हैं पग में
पत्थर बांध रखे हैं पग में
अविरल दौड़ रहा मानव पर
पत्थर बांध रखे हैं पग में
क्या भारी कदमों से कोई
मंजिल को छू भी पायेगा
पहला पत्थर बदले का है
भूल गए हम माफी देना
हो कैसे नुकसान किसी का
हमको तो बस इससे लेना
ताकत सारी इसी सोच में
अगर लगी क्या सुख आएगा
क्या भारी कदमों से कोई
मंजिल को छू भी पाएगा
नकारात्मक सोच के पत्थर
से भारी नहीं पत्थर दूजा
अगर रहे डरते ही हम तो
काम नहीं आएगी पूजा
हो भरपूर आस्था तब ही
पार नाव मन पहुंचाएगा
क्या भारी कदमों से कोई
मंजिल को छू भी पाएगा
स्वार्थ तीसरा बाधक पत्थर
त्याग नहीं जिसके जीवन में
बिना लहू से सींचे बोलो
फूल खिले हैं क्या उपवन में
जुदा जुदा राहें होंगी जब
कोई मतलब टकराएगा
क्या भारी कदमों से कोई
मंजिल को छू भी पाएगा
सामाजिकता भूल गए हम
यही बना है चौथा पत्थर
रिश्ते मर जाते दूरी से
घेर निराशा लेती हैं घर
ऐसे में देखा हर कोई
किस्मत दोषी ठहराएगा
क्या भारी कदमों से कोई
मंजिल को छू भी पाएगा
संवेदना शून्य होना भी
"अनंत" पत्थर बहु बड़ा है
जिसे जरूरत हो उसको ये
लगे कि कोई पास खड़ा है
काम दुआओं से हो जाते
कौन ये जग को समझायेगा
क्या भारी कदमों से कोई
मंजिल को छू भी पाएगा।