उतार चढ़ाव जिंदगी का..!
उतार चढ़ाव जिंदगी का..!
समस्या, परेशानी, दिक्कत, दर्द
हमेशा एक से नहीं होते
ये कभी विकट होते हैं
कभी खुद के बनाएं से दिखते हैं
दर्द देते हैं सुकून छीन लेते हैं
समय आने पर एक न एक दिन
सुलझते भी जरूर हैं।
ये दौर या ये कहूं
समय अच्छा बुरा होता है
कभी खुशियां बड़ी होती हैं
पर उल्लास मनाने वाले कम होते हैं
कभी दर्द छोटा होता है
दुःख चुभने लगता है
मन भारी हो जाता है।
मानवीय मूल्यों,
व्यवहारों में निरंतरता बनी रहे
ऐसा भी संभव नहीं,
बस उतार चढ़ाव आते हैं
कभी कभी पल ठहर सा जाता है
तब दुःख तकलीफें
ज्यादा दिखने लगती है।
पर दौर जब बदलता है
जो शून्यता दिखाई पड़ती है
उसमें भाव भी भरने लगते हैं
समस्याएं कम जान पड़ती है
बेशक नए
सामने मुंह भिंचे खड़े हो जाते हैं।
जब कभी मन
पुरानी यादों के भंवर में फँसने लगता है
स्मृतियां रह रह कर
पुनः लौटने लगती है
मन अटक सा जाता है
उसे पुनः स्थापित करने में
फिर समय लगने लगता है
पर वे ठीक भी हो जाते हैं।
किसी का होना और
फिर परिदृश्य से ओझल होना
दोनों में फर्क बस
आत्मिक संबंधों का है
एक तरफ
किसी अपने के होने पर
सब चीजें सामान्य सी दिखती हैं
पर जब दृश्य बदल जाता है
तो उनसे लगाव ,
ना होने का गम
हृदय पर लगातार
आघात भी करने लगता है।
किसी के ना होने और
मन में रिक्तता जब अखरने लगती है
स्थितियां भी बदल जाती हैं
चाहे संबंधों की बानगी हो
व्यक्तियों का मौजूदा स्वरूप हो
व्यवहारों का चिंतनशील होना हो
या बस लंबी खामोशी हो.....!