शुरूआत
शुरूआत


उसका कोई ठिकाना ना था,
इस शहर में कोई उसका अपना ना था,
किसी की चाहत में वो बंजारा बन गया,
किसी के प्यार में सरे आम तमाशा बन गया,
कभी लगता है की वो एक भ्रम था,
कभी लगता है की वो कोई पीर था,
वो गली गली घूम प्रेम कहानियां सुना रहा है,
देखो वो फिर वही गीत गा रहा है,
खुद जल कर किसी की राते वो रोशन कर आया,
किसी को एक मुस्कुराहट दे वो ज़िन्दगी जी आया,
हीर रांझा ना मिर्ज़ा साहेबा सा इश्क़ था,
ये तो एक तरफा एहसास था जो
बयान ना हुआ था,
आज उसके पास खोने को कुछ नहीं,
जो उसका अपना था आज वो भी उसका नहीं,
उस बंजारे से किसी ने पूछा कि कहा जाना है,
किस ओर किस पते पर जाना है,
वो बोला मेरा तो सब पल भर में ख़तम हुआ था,
हर नाता हर रिश्ता टुकड़े टुकड़े हुआ था,
वो अपने ज़ख्मों का मरहम तलाशने निकला है,
एक नई शुरुआत की खातिर पुराना सब भुलाने नकला है,
अब ख्वाहिश है कि कोई झूठा हमदर्द ज़िन्दगी में ना आए,
दिल खिलौना नहीं उससे खेलने कोई ना आए।