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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२६०;भगवान श्री कृष्ण के साथ बाणासुर का युद्ध

श्रीमद्भागवत-२६०;भगवान श्री कृष्ण के साथ बाणासुर का युद्ध

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श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

बरसात के चार महीने बीत गए

अनिरुद्ध जी का कोई पता ना चला

घरवाले सब शोकाकुल हो रहे।


एक दिन नारद जी ने आकर

अनिरुद्ध का शोणितपुर जाना बताया

नागपाश में बंध जाना उनका

यह सारा समाचार सुनाया।


शोणितपुर पर चढ़ाई कर दी

यह सुनकर यदुवंशियों ने

शोणितपुर को घेर लिया था

कृष्ण, बलराम के साथ सेना ने।


बाणासुर भी क्रोध में भरकर

सेना ले नगर से बाहर था निकला

शंकर जी कार्तिकेय और गणों के

साथ में आए थे वहाँ।


रणभूमि में पधार कर उन्होंने

कृष्ण बलराम से युद्ध किया था

कृष्ण का शंकर से युद्ध हुआ

प्रद्युमण से कार्तिकेय का।


बलराम का कुम्भांड और कूपकर्ण से

बाणासुर के पुत्र का साम्ब से

और स्वयं बाणासुर जो थे

सत्याकि से भिड़ गए थे।


ब्रह्मा आदि देवता, सिद्ध, चारण

आए युद्ध देखने के लिए

शंकर के अनुचर भूत प्रेतों को

वाणों से खदेड़ दिया कृष्ण ने।


शंकर जी ने श्री कृष्ण पर

शस्त्र चलाए भाँति भाँति के

परंतु सब को शान्त कर दिया

श्री कृष्ण ने अपने शस्त्रों से।


मनुष्य को जंभाई आने लगती जिससे

अस्त्र चलाया जब कृष्ण ने

उस शस्त्र के लगने से

महादेव जी मोहित हो गए।


युद्ध से विरक्त होकर वे

जंभाई पर जंभाई लेने लगे

कार्तिकेय को घायल कर दिया

कृष्ण पुत्र प्रद्युमण जी ने।


कुम्भारण और कूपकर्ण भी

घायल हो गए युद्ध में

बाणासुर की बाक़ी सेना भी

तितर बितर हुई ये देख के।


बाणासुर बड़ा क्रोधित हो गया

सत्याकि को छोड़ दिया उसने

वाणों की वर्षा करे कृष्ण पर

एक हज़ार हाथों से अपने।


सब वाण काट दिए कृष्ण ने

धनुष, रथ को नष्ट कर दिया उसके

कोटरा नाम की एक देवी थी

बाणासुर की धर्ममाता , उसने।


अपने पुत्र की रक्षा के लिए

बाल बिखेर कर, नंग धडंग हो

भगवान कृष्ण के सामने

आकर खड़ी हो गयीं वो।


दृष्टि उनपर ना पड़ जाए इसलिए

भगवान कृष्ण ने मुँह फेर लिया

धनुषहीन, रथहीन होने से

बाणासुर अपने नगर चला गया।


शंकर के भूतगण भाग रहे जब

तब ज्वर एक जो शंकर ने छोड़ा था

तीन सिर, तीन पैर वाला

कृष्ण की और दौड़ा था।


दशों दिशाओं को जलाता हुआ

वो ज्वर जब आया सामने

कृष्ण ने भी अपना ज्वर छोड़ दिया

उस ज्वर से लड़ने के लिए।


वैष्णव और माहेश्वर दोनों ज्वर

आपस में लड़ने लगे थे

अंत में माहेश्वर ज्वर ही

पीड़ित होकर वैष्णव ज्वर से।


चिल्लाने लगा और अत्यंत भयभीत हुआ

कहीं भी उसको त्राण ना मिला

अंत में हाथ जोड़कर वो

श्री कृष्ण से प्रार्थना करने लगा।


‘ प्रभु, आपकी शक्ति अनन्त है

ब्रह्मादि के महेश्वर भी आप हैं

आपको प्रणाम करता हूँ

आपकी शरण ग्रहण करूँ मैं।


आप अपनी लीला से ही

अनेकों रूप धारण कर लेते

देवता, साधु तथा धर्ममर्यादाओं का

पालन पोषण आप ही करें।


पृथ्वी का भार उतारने के लिए

ये अवतार हुआ है आपका

आपके दुस्तर, तेज ज्वर से

मैं अत्यन्त पीड़ित हो रहा।


चरणकमलों की शरण ग्रहण करूँ

मेरा ये संताप मिटाइए ‘

श्री कृष्ण के कहा’ त्रिशिरा !

प्रसन्न हूँ मैं तुम्हारी स्तुति से।


मेरे ज्वर से निर्भीक हो जाओ

और संसार में ये संवाद हमारा

जब कोई भी स्मरण करेगा

उसे तुमसे कोई भय ना होगा ‘।


भगवान के ऐसा कहने पर

माहेश्वर ज्वर वहाँ से चला गया

तभी तक बाणासुर भी

युद्धभूमि में फिर आ पहुँचा।


वाणों की झड़ी लगा दो कृष्ण पर

कृष्ण ने चक्र हाथ में लिया

भुजाएँ काटने लगे वो उसकी

और जब ये शंकर ने देखा।


पास आए चक्रधारी कृष्ण के

स्तुति करने लगे वो उनकी

‘ प्रभो ! आप परब्रह्म हैं

परमपुरुष भी आप ही।


आप तो स्वयंप्रकाश है

अनन्त हैं आप वास्तव में

मानवों को मनुष्य शरीर ये

दिया अत्यन्त कृपा करके आपने।


जो इसे पाकर भी आपके

चरणकमलों का आश्रय नही लेते

वह मनुष्य तो मानो कि

अपने को ही धोखा हैं देते।


मैं, ब्रह्मा और विशुद्ध हृदय वाले

ऋषी, मुनि शरणागत आपके

आत्मा, प्रियतम और ईश्वर हैं

क्योंकि आप ही हमारे।


बाणासुर मेरा कृपापात्र है

अभयदान दिया उसे मैंने

जैसी कृपा की परदादा प्रह्लाद पर

उसपर भी वैसी ही कृपा करें ‘ ।


भगवान कृष्ण ने कहा, ‘ भगवन

निर्भय कर देता हूँ मैं इसे

वैसे भी मैं जानता ही हूँ

दैत्यराज बलि का पुत्र ये।


इसलिए वध ना कर सकता इसका

क्योंकि प्रह्लाद को वचन दिया मैंने

किसी दैत्य का वध ना करूँगा

जो जन्म ले तुम्हारे वंश में।


घमंड चूर करने के लिए इसका

इसकी भुजाएँ काट दीं मैंने

जो चार भुजाएँ बची हैं

अजर अमर बनी रहेंगी वे ‘।


अभयदान पाकर कृष्ण से

अनिरुद्ध, ऊषा को ले आया वो

उन दोनों को लेकर कृष्ण ने

प्रस्थान किया अपनी द्वारका को।


द्वारका को सजाया गया था

कृष्ण ने जब उसमें प्रवेश किया

द्वारवासी बहुत प्रसन्न थे

बहुत बड़ा स्वागत हुआ उनका।


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