श्राप
श्राप
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मन में आशा और कुछ कर गुजर जानें की चाहत
हौसलों को पंख लगाकर उड़ जानें की वो कोशिश
सपनों की वो अपने करती दिन-रात ही हिफाजत
निखरने वाला था जल्दी ही उसकी मेहनत का रंग
पर लग गई नजर उसके सपनों को न जानें कहां से
श्राप बना दिया उसको लड़की कहकर इस जहां ने।