अनकही
अनकही
तन्हाई भी अच्छी लगती है कभी
खुद के साथ बैठकर तो देखो जरा,
खामोशी भी अच्छी लगती है कभी
खुद की सुनकर तो देखो जरा,
वीरानगी भी अच्छी लगती है कभी
खुद को खोकर तो देखो जरा,
बेचैनी भी अच्छी लगती है कभी
खुद को खोजकर तो देखो जरा।
