ज़िद
ज़िद
मैंने तो जैसे कसम ही खा रखी है ख़ुदको रुलाने की,
दूसरों की हर छोटी बात को अपने दिल से लगाने की।
कमजोरी है मेरी दूसरों के आंसुओ पे पिघल जाने की,
समझाते रहो दिल को कमबख्त आदत है रूठ जाने की।
मैंने तो जैसे कसम ही खा रखी है ख़ुदको रुलाने की,
दूसरों की हर छोटी बात को अपने दिल से लगाने की।
कमजोरी है मेरी दूसरों के आंसुओ पे पिघल जाने की,
समझाते रहो दिल को कमबख्त आदत है रूठ जाने की।