Dr. Priya Kanaujia
Abstract Drama Classics
मैंने तो जैसे कसम ही खा रखी है ख़ुदको रुलाने की,
दूसरों की हर छोटी बात को अपने दिल से लगाने की।
कमजोरी है मेरी दूसरों के आंसुओ पे पिघल जाने की,
समझाते रहो दिल को कमबख्त आदत है रूठ जाने की।
छल
कलयुगी प्यार
राह
ज़िद
मेरा मीत
वहम
अनकही
कड़वाहट
उलझन
मैं
अपने ही खून दे रहे हैं दगा, दूसरों को कैसे हम कहें सगा, अपने ही खून दे रहे हैं दगा, दूसरों को कैसे हम कहें सगा,
मेरी नन्ही सी गुड़िया, बड़ी हो रही है, तू। मेरी नन्ही सी गुड़िया, बड़ी हो रही है, तू।
अपनी माँ की तबीयत हूँ मैं इज्जत हूँ अपने पापा की. अपनी माँ की तबीयत हूँ मैं इज्जत हूँ अपने पापा की.
कभी तो आओगे, पढ़ोगे तुम, अपना ही लिखा इतिहास, कभी तो आओगे, पढ़ोगे तुम, अपना ही लिखा इतिहास,
माँ और संतान का रिश्ता है अनमोल माँ और संतान का रिश्ता है अनमोल
तुम्हारा रोशनी तुम जीवन में अपने करते रहो.! तुम्हारा रोशनी तुम जीवन में अपने करते रहो.!
इस जगत, इस शरीर के लोगों हम तो किरायेदार हैं। इस जगत, इस शरीर के लोगों हम तो किरायेदार हैं।
धीरे धीरे फिर यूँ आंखों से शरारत करता हूँ। धीरे धीरे फिर यूँ आंखों से शरारत करता हूँ।
मुझे पतझड़ के रुदन से क्या लेना, मुझे पतझड़ के रुदन से क्या लेना,
चहूँ दिशाएँ महकाती वह चंचल पवन चहूँ दिशाएँ महकाती वह चंचल पवन
दो किताबें हाथ में है ख़्वाब मेरे राख़ में है। दो किताबें हाथ में है ख़्वाब मेरे राख़ में है।
मेरी सारी उम्र बीत गई मेरी सारी उम्र बीत गई
अद्भुत उनका वेश, गजब था ताना बाना। अद्भुत उनका वेश, गजब था ताना बाना।
प्रभा आंटी दो रूपये की लड़ाई बंद करो। कुछ तो नेक कर्म करो। प्रभा आंटी दो रूपये की लड़ाई बंद करो। कुछ तो नेक कर्म करो।
रखती सबका कितना ध्यान परिवार को बांधे रखती रखती सबका कितना ध्यान परिवार को बांधे रखती
मुसाफिर के लिए तपती धूप में साया हैं मुसाफिर के लिए तपती धूप में साया हैं
आज ना आसमान में तारें दिख रहे ना कहीं चांद दिख रहा। आज ना आसमान में तारें दिख रहे ना कहीं चांद दिख रहा।
मां के आंचल में सुकून है मां के आंचल में सुकून है
मुफ्लिसी तेरा नाम कुछ और है। और तुम्हे कहते कुछ और हैं।। मुफ्लिसी तेरा नाम कुछ और है। और तुम्हे कहते कुछ और हैं।।