शोक का आलम
शोक का आलम
क्या करुं, किस से कहूं,
कैसी है ये जिंदगी?
कोई हंसता है तो कोई रोता है,
समझ नहीं सकता ये जिंदगी।
कोई मायूस बन के घूम रहा है,
कोई बेताब बन के जी रहा है,
हर तरफ शोक का आलम है,
समझ नहीं सकता ये जिंदगी।
कोई बेकरार होकर भाग रहा है,
कोई नफ़रत की आग में जल रहा है,
इनसान आज हैवान बन गया है,
समझ नहीं सकता ये जिंदगी।
धर्म के नाम से पाखंड चल रहा है,
भीतर से इनसान अलग दिख रहा है,
एतबार करना कठिन बन रहा है,
समझ नहीं सकता ये जिंदगी।
इस जिंदगी से परेशान हुआ हूं मैं,
खुदा की कयामत चाहता हूं मैं,
मुकम्मल जहां नहीं मिलता "मुरली",
समझ नहीं सकता ये जिंदगी।