शिकायतें
शिकायतें
शिकायतें बहुत होंगी हम से
जितनी भी हो, लिख कर भिजवा दो
बेचैन दिन और तन्हा रातें
काग़ज़ में बंध कर भिजवा दो
दर्द की हर एक आवाज़ें
शब्दों में यूँ भिगो के
अश्कों की काली घटाएँ
कोरे पन्नों पे बरसा दो
के तर बतर होना है मुझको
ख़त पढ़ कर यूँ रोना है मुझको
जैसे तुम ….रोया करते हो
हाँ वही …पल भिजवा दो
शिकायतें बहुत होंगी हम से
जितनी भी हो लिख कर भिजवा दो।