शह और मात
शह और मात
तुमने
जारी किया फ़रमान
कि बचे हैं उसके पास
दिन केवल चार।
पहले दिन
वह घबराई बहुत ज़्यादा
थर्रा गई
जैसे उसके भीतर हो
हिरोशिमा।
दूसरे दिन
उसने याद किए वे सारे दिन
जो थे स्ट्राबेरी की तरह
जो हुए नाशपति की तरह
और फिर बदल गए थे
करेले में।
तीसरे दिन
लगा जैसे दौड़ रहा हो
कोई निरीह हिरन
एक तीर और वह
इतना ही सच था।
चौथे दिन
उसे फैसला करना था
कभी उसके मन में आया
स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी
कभी सुंदर ताजमहल
तो कभी चीन की लंबी दीवार
खींच गई उसके भीतर,
कभी उसके भीतर
समा गए सातों समंदर
तो कभी वह दोनों ध्रुवों की तरह
हो गई ठंडी और सख़्त।
तुमने चेताया
यह शह
और यह लो मात !
तुमने दे दी सज़ा पर
मुक्त हो गई वह
तुम्हारी बिसात से !