शबरी
शबरी
मतंग मुनि की वाणी पर
था शबरी को विश्वास।
प्रभु श्री राम के दर्शन की
मन में जगी थी आस।
सुबह सवेरे काँटों को चुनती,
पथ पर वह फूल बिछाती
नित दिन पथ निहारती,
आज मेरे राम आयेंगे।
बरसों की प्रतीक्षा रंग लायी,
शबरी की आस राम को खींच लायी।
राम को देख वह फूली ना समायी।
कुटिया में जाकर मीठे बेर ले आयी।
कहने लगी शबरी--
प्रभु,ये बेर बड़े मीठे हैं,
मैं रोज आपके लिये तोड़कर
लाती हूँ।
प्रभु ने किया झूठे बेरों का आस्वादन
माँ ये बेर मुझे माता कौशल्या की याद
दिलाते हैं।
वह भी बड़े प्रेम से मुझे भोजन
खिलाती थी।
भोजन करते समय प्रेम से निहारती थी।
भावविभोर श्री राम दिये शबरी को
नवधा भक्ति का वरदान।
प्रभु श्री राम की कृपा से गयी
वह गुरुलोक धाम।
