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Sangeeta Pathak

Tragedy

4  

Sangeeta Pathak

Tragedy

चिड़िया की उड़ान

चिड़िया की उड़ान

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स्वप्न में मैं पंछी बन

दूर क्षितिज तक

भरने लगी उन्मुक्त उड़ान।

उड़ान भरते भरते

सूरज की तेज तपन से

पंख मेरे जलने लगे।

गला प्यास से सूखने लगा

कहीं नहीं था पानी का नामोनिशान।

सैकड़ों पेड़ जमीं पर

कटे पड़े थे।

असंख्य घोंसले बिखर चुके थे।

पंछी करुण क्रंदन कर

उन्मुक्त गगन में उड़ चले थे।

फूटे अंडों को देख

मेरी आँखों से आँसू बहने लगे।

मानव के निज स्वार्थ से

परिंदे भी दुखी होते हैं।

लुप्त होती प्रजातियों को देख

मन ही मन रोते हैं।



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