प्रकृति का दोहन
प्रकृति का दोहन
शहर से गाँव तक उग आया है
कांक्रीटों का घना जंगल।
पहले दूर क्षितिज तक,
दिखती थी हरियाली ,
अब जिधर देखो
उधर दिखती है बदहाली।
खेत बिकते गये,
पेड़ कटते गये।
खेत बने ग्रीन सिटी ,
वन बने नेचर सिटी।
कांक्रीटों के जंगल में
पेड़ और खेत लुप्त हुये.
जिन पेड़ों पर बनाती थी
गौरया घोंसले कभी,
वो पेड़ भी अब कट चुके हैं।
जिन फूलों की क्यारी में,
जिन सब्जियों की बाड़ी में
हम भाग करते थे तितलियों
के पीछे कभी,
वहाँ भी खड़े हैं
ऊँचे ऊँचे महल और अटारी।
वायु,अन्न और जल
प्रकृति का है वरदान।
इन स्रोतों की समाप्ति से
कैसे होगा नव विकास???
नव निर्माण के नाम पर
जंगलों का विध्वंस
तब प्रकृति का कैसे
होगा नव विहान???
