उसका बचपन
उसका बचपन
कंधे में गठरी के बोझ को
उठाये कचरे के ढेर में वह
जिंदगी की तलाश करता है।
सड़क पर आती जाती गाड़ियों
में सजे धजे बच्चों को हसरत
भरी नजरों से देखा करता है।
माँ की बीमारी और पिता
के व्यसन ने डाल दी है उसके
पैरों में मजबूरी की बेड़ियाँ।
तिल तिलक र मर रहा है
उसका बचपन।
वह भी हमजोली बच्चों के बीच
खेलना चाहता है।
वह भी उनके संग
कंधे में बैग लटकाये
स्कूल जाना चाहता है।
