शायरी
शायरी
मुद्दत से थी आरजू जिसकी, दे गई वो तन्हाई
दे के गम के आंसू मुझको, गैर संग दुनिया बसाई
भूलना चाहा जितना उसको, पल पल याद सताई
यादों के इस जाल में फंस कर, सारी उम्र गंवाई
खंडहर हो कर हसरतें दिल की, खाक में जा समाई
उजड़े चमन से प्रीत लगा कर ,हंसने लगी तन्हाई
गम के घूंट को हर पल पी कर, जीने की वजह पाई
पगला, दीवाना , मस्ताना, हर नाम की दौलत पाई
दिले आईने ने देखा, मेरी हसरतों का मेला
खूने जिगर से लिख दी, मेरी हसरतों की लीला
नाकाम हसरतों का जब भी निकला डोला
संगी न साथी कोई, दिल चल दिया अकेला।
