सहानुभूति
सहानुभूति
कोविड के इस दौर के ,
ये रंग बड़े निराले हैं,
चार कंधे नहीं मय्यसर अर्थी को,
व्हाट्सएप्प पर चारसौ,
रिप लिखने वाले है,
सहानुभूति अब तो हैं सारी,
सोशल मीडिया पर सिमटी यारो,
तुम्हें तो छोड़ दिया सबने बस ,
अब भगवान के हवाले है ।।
तू न रख ये गफलत कि,
तेरी मौत पर लगेगा मज़मा,
नियम इस दौर में हर खेल के ,
वो चाहे हो मौत या जिंदगी का,
इस जमाने ने बदल डाले हैं,
न आएगा सैलाब अश्कों का,
ऐसा अब तेरे मातम पे कोई,
आंसू भी तो हर आंख के,
इस वक़्त ने सुखा डाले हैं।।
जो सहानुभूति थी उनको तुझसे,
वो सिमटी है आज कल बस,
एक खौफ के लिहाफ में,
तेरे बन के ही जियें या,
वो फिर खुद को बचायें,
यही कश्मकश अब चलती,
हरदम उनके दिमाग में,
माना मौत के इस डर ने ,
रिश्तों के आयाम बदल डाले हैं,
पर देख लेना पैर उठा कर,
ए वक़्त तू उनके भी कभी,
पांव में उनके भी नहीं,
तूने दिये कम छाले हैं।।