शान्ति की ओर
शान्ति की ओर
हे मानस के राजहंस
तू चल उस देश जहाँ
मानव से मानव का पलता हो प्रेम जहाँ
जहाँ ना नफरत की गर्मी हो
ना क्रोध की हो तपिश।
पूनम की शीतल ठंडी हवा
बहती हो हर रात जहाँ
हे मानस के राजहंस
तू चल उस देश जहाँ
भाई-भाई मे प्रेम हो
जाति-बाह्य आडम्बर ना हो जहाँ।
एक धर्म प्रेम का चलता हो रीतिवाज जहाँ
हे मानस के राजहंस
तू चल उस देश जहाँ
जहाँ सागर की गहराई हो सबके दिलों में
अंधकार का ना हो नामो निशां।
लाखों सूरज मिल कर देते हो प्रकाश जहाँ
अमन चैन की चिड़िया
गाती हो दिन रात जहाँ
हे मानस के राजहंस तू चल उस देश जहाँ
हे मानस के राजहंस तू चल उस देश जहाँ।
