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Kusum Joshi

Action

4  

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शांति का कोलाहल

शांति का कोलाहल

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शांतिवार्ता संसद में,

बैठे बैठे हो जाती है,

ये क्या जानें सीमा पर,

उम्मीदें गोली खाती है,

मरता नहीं जवान,

मांग की लाली भी मर जाती है,


खोता नहीं चिराग ही केवल,

कलाई राखी की खो जाती है,

खो जाती हैं कहीं लोरियां,

मां की सारी चिंताएं,

ये शांति शांति कहते रहते,

वहां गोलियां चल जाती हैं।


शांति का ऐसा है कोलाहल,

मानव सिहरता है पल पल,

कहीं पे हैं गोली की आवाजें,

कहीं पे शहीदों के जनाज़े,

ये जो हल्ला सड़कों पे होता है,

शहीदों के शव पे कौन रोता है,


घरों में सन्नाटे से पसरे हैं,

दिन में भी दिखे अंधेरे हैं,

बच्चे मां से यूं कहते हैं,

मां बता दे पापा कहां रहते हैं,

क्या बोले मां जो ये हलचल है,

शांति का ही कोलाहल है।


किसी को इससे क्या करना है,

सिपाही हैं उनको तो मरना है,

वो नेता हैं शहादत क्या समझेंगे,

बस भाषणों में दुख व्यक्त कर लेंगे,

रोना तो उस मां को है,

जिसकी गोद में पुत्र का सिर है,


शहीदों के घर में जो आंसू हैं,

इनके लिए वो केवल सियासत हैं,

लाल लहू में खोते जीवन के रंग,

इनके लिए सत्ता की हैं वो जंग,

खुशी मिट गई ये दुःख के जो पल हैं,

शांति का ही कोलाहल हैं।


ये सर्जिकल स्ट्राइक पे दम्भ भरते रहेंगे,

वो जाधव कितने पकड़ते रहेंगे,

ये जुमले भरेंगे बड़े बड़े से,

वो मां को भी अपमानित करेंगे,

के UNO में जाएंगे,

वहां आतंकी राज चलाएंगे,


क्या बदलेगा पर सीमा में,

रोज शहादत ही होंगी,

ये वार्ताओं पर झूमेंगे,

वहां रोज खून की होली होंगी,

ये जीत हार का जो छल है,

शांति का ही कोलाहल है।


बदलनी होंगी नीतियां अपनी भी,

ना मरे शहादत शहीदों की,

नेताओं को ना ये दम्भ रहे,

कोई सत्ता क्या आजन्म रहे,

अबकी जो कोलाहल होगा,

वो शोर सियासत के घर होगा,


सत्ता ही हिल जाएगी,

जब जनता प्रश्न पूछने आएगी,

तब जुमले काम ना आएंगे,

क्या उत्तर ये दे पाएंगे,

सामने आएगा तब एक एक छल,

उस दिन होगा असली कोलाहल।


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