मिलन
मिलन
भर लूँ आज जी भर के
अपनी बांहो के बंधन में।
दूर बहुत ही तू रहे,
हर मनभावन सावन में।
हर सावन भी तब मुझे,
तपता तपता लगता था,
नयनो से मेरे रिमझिम,
सावन बरसता था।
चाहती थी संग तुम्हारे,
मैं भी सरहद पर आ जाऊँ,
संग संग ही साथ तुम्हारे,
दुश्मन को धूल चटा पाऊँ।
न आई मैं कभी क्योंकि,
तुम्हे कर्तव्य पथ पर भेजा था,
अपने अश्रुओं को छिपा कर,
मैंने मुस्कान सहेजा था।
आये हो आज जो तुम,
जी भर के जीना चाहती हूँ,
कर आलिंगन आज मैं
तुझमे ही खोना चाहती हूँ।
कल तुम चले जाओगे,
याद ये पल आएंगे,
तन्हा तन्हा मैं रहूँगी,
ये पल बहुत रुलायेंगे।
पर माँ भारती के लाल तुम,
कर्त्वय पथ पर जाना तुम,
विजयी होकर तुम,
तिरंगे के गीत गाना तुम।