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Dobhal Girish

Romance

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Dobhal Girish

Romance

ढलती शाम

ढलती शाम

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शाम जो तेरे पहलु में ढलती है,

फिर रात दिन तुझसे मिलने को तरसती है।


फिजाएं भी तुझे देख कर रंग बदलती हैं,

छोड़ अपना वो तेरे रंग में रंगती हैं।


जो हवाएं तुझे छू कर गुजरती हैं,

तेरी मुहब्बत के लिए वो भी तो तरसती हैं।


ये घटाएं भी तुझसे मिलने को बरसती हैं,

हुस्न तेरा देख गिरती हैं संभलती हैं।


शमा जो तेरे कमरे में जलती है,

तेरे ही इश्क़ में सारी रात पिघलती है।


शाम जो तेरे पहलू में ढलती है,

फिर रात दिन तुझसे मिलने को तरसती है।

 

               


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