शाब्दिक श्रद्धांजलि जीत
शाब्दिक श्रद्धांजलि जीत


सूरत की कौन-सी सूरत का
भला ज़िक्र करूँ,
जो राख़ में मिल गयी या
जो तमाशबीन बनी रही।
ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-अश्क़ को
किन लफ़्ज़ों में अयाँ करूँ
जो परिवार पर टूट पड़ी या
जो ग़मगीन बनी रही।।
उन माँ-बाप की ज़िंदगी को
भला पुरनूर कौन करेगा?
उस कल को कल के लिए
कल में भला तब्दील कौन करेगा?
इंसानियत तो उस दिन भी
कफ़न ओढ़े थी पर
उस 'केतन' की इंसानियत को
भला याद कौन करेगा?
सूरत की...
अनगिनत ख़्वाबों व यादों में
वो सब सिमट जायेंगे,
क्या! हम इंसान कभी उस
वेदना को महसूस कर पाएंगे।
<p>जो थे चिराग़-ए-रोशन कुनबे के
क्या! वो मासूम कभी वापस लौट पाएंगे।।
सूरत की...
न जाने कब पूर्णतया
नियमों के पालन होंगे,
न जाने कब विदेशों से
तकनीकि के आयात होंगे।
रुपयों की तिश्नगी इस क़दर
समा चुकी है कि
न जाने कब हिंदुस्तान के
अच्छे दिन होंगे।।
सूरत की...
22 अर्थियों के मंज़र को
उकेरने का सामर्थ्य नहीं हममें
इस तरह की शहादत को
सहने की सहनशक्ति नहीं हममें।
आख़िर कब कोचिंग मानकों पर
चलेगी साहेब क्योंकि
अब चीख़ें सुनने का इतना
सामर्थ्य नहीं हममें।।
सूरत की...