सेतु अहम् का ....
सेतु अहम् का ....
जीवन की लम्बी डगर पे,
संग चलते-चलते,
सजाए कितने सुनहरे सपने,
फिर न जाने क्यों और कैसे,
खड़ा हो गया सेतु
हम दोनों के बीच
तुम्हारे अहम् का..
नाराज़ वक़्त ने किया दूर हमें,
मैं इस ओर,
तुम उस ओर,
मेरी हर पहल,
हर कोशिश,
हुई लाचार और कमज़ोर,
कितना मुश्किल था
पहुँचना उस पार...
अब शायद सेतु तले की
भीड़ में खोना ही
मेरे जीवन का
हो गया है सार।।
