सड़कें
सड़कें
घर के बाहर घर नहीं होते हैं
सड़कें होती है
एकदम आवारा
जहाँ तहाँ पसरी हुई
बिना किसी चाह के
बनी रहती राह हर राही की
हजारों लाखों कदमों से रौंदी हुई
फिर भी खामोश सी
कैसी अजीब सी बात है
वे कही जा भी नही सकती है
सड़कें तो आवारा होती है
क्योंकि सड़कों का कोई घर नहीं होता है
