सच्चाई
सच्चाई
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झूठी है दूनिया जो प्यार देती है, ब्याज पर ही खुशी उधार
देती है,
जब जब भी देखा सच्चाई का आईना,
ऐसा लगा कि ख्ब्बाहिशों के मंजर को उजाड़ देती है।
जिंदगी गुजर जाती है इस कदर कि, अच्छे अच्छों को
मात देती है।
याद आती है जब कभी झूठी
दास्तां उनकी, गम की रंगत
को निखार देती है।
कोई असर दिखा नहीं, शिकवे शिकायतों से भी,
ऐसे गुजरा जिंदगी का सफर
शमा जैसे लड़ते लड़ते अंधेरे
से अपनी उम्र गुजरा देती है।
किसी को क्या दोष दें सुदर्शन, जुदाई अपनों की
ही दिले गमों की बौसार देती है।