सबका भला
सबका भला
कटु सत्यता को जान मानव, क्यों नहीं खौफ खाता है ।
समझ बैठा सब कुछ अपना, दुनिया पर रौब जमाता है।।
जी नहीं भरता जो दिया उससे, और भी चाहत करता है।
प्रत्यक्ष आंखों से देख नजारा ,आगे के स्वप्न बुनता है।।
निस्वार्थ में डूबा रहता ,औरों का हिस्सा खाता है ।
दीन- दुखियों को देखकर भी, अच्छे कर्म नहीं करता है।।
सब में प्रभु ही रमते, नकली आडंबर रचता है।
पत्थरों में सिर पटकता, अंतर में नहीं देखता है।।
कुछ नहीं बिगड़ा अभी समय है, वह सब पर नजर रखता है।
थोड़ा समय "नीरज" उसको दे दे, वह सब का भला करता है।।