सब कुछ प्यार में क्यों
सब कुछ प्यार में क्यों
एकतरफा सा था पहले पहल तो
दूसरा कुछ जानता भी न था जो
तब कॉल या संंदेश तरीका कम था।
और जो था वो अनकहा बस मन था।
देखा था उसे बहन की शादी में उसकी
चाहत होने लग गई थी अब जिसकी
उसे पता तक ना इस गुमशुम प्यार का
और इंतजार होता तो बस दीदार का।
मुश्किल से फोन नंबर हासिल किया था
जो मैंनेे उसकी अपनी चाची से लिया था
बहाना बनाया था स्कूल केे कुछ काम का
मन में बिगुल बजता गया था तेरेे नाम का।
बता दिया था पहली कॉल में ही वो सच
अब कठिन हो गया था पाना उससे बच
हामी भर दी उसने भी अब अपनेे साथ
कह दिया कर तू मुझसे भी दिल की बात।
अभी बस कुछ ही दिनों की तो बातें हुई थी
उमर, रिश्तेे- नाते ऊंच नीच दिखनेे लगा
समाज जाति इज्जत बीच में खींचने लगा
दूरी मिली दोनों को वफा में सलाखें हुई थीं।

