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Divine Poet

Tragedy

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Divine Poet

Tragedy

सब एक जैसे नहीं है यहाँ

सब एक जैसे नहीं है यहाँ

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एक बात दर्द दे जाती है

अक्सर क्यूँ सब एक जैसे नहीं होते !

क्यूँ साथ हंसते नहीं मिलकर 

क्यूँ दर्द बाँट कर साथ नहीं रोते !

थोड़ी गहराई में झांक कर देखा तो 

पता चला के सब बिलकुल अलग हैं

जात अलग है ,हर बात अलग है 

मजहब और मुलाक़ात अलग है 

यहाँ इंसान मैंने नहीं देखा 

जो इंसानों की फ़िक्र करे 

ना हंसें किसी के दर्द पे 

ना किसी के बद्दहाली का ज़िक्र करे 

थोड़ी ख़ुशी हो तो भी बाँट लो 

थोड़े ग़म किसी के कम कर दो न

जाने क्या बने इस दुनिया का 

सब एक जैसे नहीं है यहाँ।



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