"सब चाहते सुविधा"
"सब चाहते सुविधा"
अजीब सी हुई आजकल दुविधा है
सब चाहते है, आजकल सुविधा है
कोई मेहनत करना नहीं चाहता है,
ओर ख्वाब देखते है, बस, चुनिंदा है
बिना जले, कोई दीपक न बनता है
बिना, चले न मिले मंजिल परिंदा है
सच सस्ता, झूठ हुआ, महँगा पुलिंदा है
तम से रोशनी कर रहे लोग जिंदा है
कर्मवीर की करते वो लोग निंदा है
जिन्हें पसंद न मेहनत की विधा है
अजीब सी हुई आजकल दुविधा है
पागलों को दे रहे, आजकल शिक्षा है
मामला आजकल बहुत पेचीदा है
आलस्य आजकल कुछ यूं जिंदा है
बिना करे, सब बनना चाहते परिंदा है
मेहनत बाज हुआ बहुत ही शर्मिंदा है
पर खो रहा, आज भीतर गोविंदा है
हर शख्स हुआ, आजकल दरिंदा है
ईमान, धर्म बिल्कुल ही छोड़ दिया है,
मुफ्त की खाने का हुआ, मनु मिंडा है
छोड़ दे, तू साखी मुफ्त की रोटी को,
इससे होता स्व स्वाभिमान शर्मिंदा है
लड़ते हुए मरे वो सच में होते जिंदा है
बाकी सुविधाएं तो आम पिलपिला है
गर जीवित रही, अपनी खुद्दारी तो,
सूखी रोटी में चरम सुख अमृता है
इसलिये मेहनत का खा तू निवाला
मिलेगा स्वर्ग पृथ्वी पर ही जिंदा है