सब भूलते हैं
सब भूलते हैं
चलो आज सब भूलते हैं
वो प्यार, वफा की बातें
खुमारी भरी रातें
वो तुम्हारा मेरा प्रथम मिलन
बाजार के दोर में हांफकर फूलते हैं
ढोते हुए रिश्तों को उठाकर फेंक
चलो आज सब भूलते हैं
कुछ दर्द होगा, कुछ तकलीफ होगी
चलो, पीछा छूटा, शायद न होगी
जब रिश्ते मांग पूर्ति के झूले में झूलते हैं
तब अच्छा है कि चलो सब भूलते हैं
हम कर लेंगे गुजारा, तुम देखो सुखद भविष्य
तुम जोडों, महलों की शान शौकत में
हमें अपना छोटा-सा गाँव प्यारा
तुम्हें आकाश में उड़ने का शौक
हमें मोहब्बत है मिट्टी से
जमीन आकाश एक हो नहीं सकते
चलो तुम आकाश, हम धरा पर चलते हैं।