सौंदर्या
सौंदर्या
तेरी आँखें, तेरा चेहरा,
उतर गया सीने अंदर
तोड कर सारा पहरा।
चेहरे पर मद भरी नशीली आँखें
नुकीली नाक, लाल कमल पंखुड़ी से होंठ
शरारती हवा, बार-बार
टकरा कर छेडती तेरी
जुल्फ़ों की काली लट भी
इधर-उधर लहरा कर
बिखरती हुई चेहरे पर
और सुंदरता बढ़ा देती है
गोरे चेहरे को और गोरा बना देती है।
पूरा शरीर ढला हुआ
किसी तराशी मूर्ति-सा
हर जगह अलग-अलग
हर अंग अपनी जगह
शोभायमान हो रहा
हाथों का अपनी जगह
अपना अलग महत्व है।
टांगे भी खिली-खिली
हरे कपडों से ढकी
अपना महत्व जता रही हैं
आगे पीछे बढ़ कर ये
उन्हें ओर लहरा रही हैं
वाकई तुम क्या हो ?
क्या इंद्र की हूर हो
या फिर आसमॉं से
उतरी हुई तुम कोई परी हो ?