सौभाग्य क्या छिना मुझसे
सौभाग्य क्या छिना मुझसे
सुहाग तो छिन गया मुझसे ,
देखो ये काजल बिंदी का हक भी मुझसे छीनते हैं
ये रस्मों-रिवाजो के नाम पर ,
देखो एक जिंदगी को ,
जिंदा ही दफन करते है ....!!!!
सूरज ना बदलेगा मेरे लिए ,
रात ना बदलेगी मेरे लिए
चार दीवारों में ये देखो ,
ये मेरे उजाले-अंधेरे क़ैद करते हैं.....!!!!
ये हाथों की चूड़ियां देखों मेरी तोड़ते हैं
बिताया जिस संग जीवन का हर लम्हा
उन लम्हों की निशानी मुझसे छीनते है ....!!!!
आशिर्वाद देखो ,
कैसे तानों में तब्दील हो गए हैं ,
जो थे मेरे अपने ,वो ही जीनें का हक छीनते है....!!!
एक चिता देखो शमशान में सजी है
एक चिता देखो ये मेरी घर में सजाते हैं
हूं मैं कोई गुनहगार ,आज मुझे ये
अश्कों की सजा सुनाते हैं ....!!!
मेरी ही कोख की निशानी पर ,
अपना हक ये बताते हैं
मुझसे छीनकर मेरी औलाद
ये दुनिया को अपना संस्कारी कुटुंब बताते हैं....!!!!
मेरे दर्द के सन्नाटों में ,
ये छूरी अपने शब्दों की चलाते हैं
ये अपनी बहू-बेटी के
अस्तित्व पर खुद ही सवाल करते हैं....!!!!