सावन में बचपन की यादें
सावन में बचपन की यादें
आता था जब भी सावन
नये बरसाती पाकर हमारा हो जाता मनभावन
स्कूल जाने को भी मना न करते
हल्की फुहारों पर भी बरसाती पहन खूब उछलते
छोटे से रंगबिरंगे छातों को
बिन बारिश भी घर में लगा चहल क़दमी करते
कभी कभी तो छातों से घर बना
उसी के नीचे सो जाने की ज़िद्द थे करते
चला जाता है बचपन कहीं
पर यादें कहीं न जाती हैं
आज अपने बच्चों को नये छाते लाकर देते
उनकी ख़ुशी देख अपना बचपन उन्ही में पाते