मातंग और शबरी
मातंग और शबरी
शबरीमाता लोक प्रिय है
कहानी उनकी निराली है।
भीतर भक्ति जगानेवाली
दिल पिघलाती पुण्य कथा
सब सुननेवाले गद्गद होंगे
सादर शीश झुकेंगे श्रद्धा से
कर्मकाण्ड सब गिर जाएगा
पुण्य भाव के अभाव में।
भील राज की कन्या शबरी
स्वपिताश्री की इकलौती
पशुचितावान निठुर व्यक्ति से
शबरी की शादी निश्चय की
निरीह पशुओं की बलि हो गई
शादी के शुभ अवसर पर '
शबरी का दिल दया से उभरी
कहे बिना रात जंगल भागी।
रात रात वह भागती रही
प्रातःकाल मातंग से मिली।
त्रिकालदर्शी ऋषि ने उसको
पुण्याश्रम में प्रवेश दिया।
सारा मंत्र पढ़ाया गुरुदेव
राम नाम की विधि समझाए।
स्वीकार किया सामाजिक रोष
शरणागत को स्वीकार किया।
महामुनि का अंत निकट था
शबरी व्याकुल होने लगी।
बात समझकर आश्रमपति ने
पास बुलाकर समझाया।
धैर्य भरो दिल कष्ट सहनकर
नित्य साधना में लग जा।
दिन बीते बीते जाने पर , बेटी ,
श्रीराम प्रभु आएंगे यहाँ।
भक्तिभाव से स्वागत करना
आशिष पाकर मुक्ति लो।
शबरी ने जब सुखमय सांस ली
तब मुनिवर अंतर्धान हुए।
