स्वातंत्र्यामृत
स्वातंत्र्यामृत
स्वतंत्रता के आँगन में पंख बिछाकर उड़ता कौन ?
स्वतंत्रता से उड़ता है, खुशी खुशी से चिडिया गण
आज बह रही नदी सारे, आगे बढकर जाती क्यों ?
स्वतंत्रता से भूमि के, शुभकर तन की धुलाई को।
पृथ्वी पर नवजात शिशु हाथ उठाकर रोता क्यों ?
स्वतंत्रता की चिंगारी से, हुदयपटल को सुलगाने।
तिलक लगाकर तेज़ी से नारी दल क्यों दौड रही ?
नारा लगाकर पुरुषों से द्रुत स्वातंत्र्यामृत चूसने को
हिमगिरि अटल न विचलित हो पुकारता है ज़ोर से
स्वतंत्र भारत के शान को कभी न खो देना है हम।
निस्पृह तृण व द्रुम राजा शीश उठाकर कहता क्या
हरी भरी इस प्रकृति को स्वतंत्रता से खिलने दो॥
