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Neeraj pal

Inspirational

4  

Neeraj pal

Inspirational

पंचामृत

पंचामृत

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(सेवा) भाव स्वरूप है अंतर का, त्याग स्वरूप बाहर सम होता ।

नि:स्वार्थ, छलहीन और कामना हीन सेवा को,सही मतलब तू जान।।


 सच्ची (सरलता) आती बातों से, न मिलती बनावटी उसूलों से।

 अहंकार, दम्भ मिटाना होगा, तब तक न होगा असली ज्ञान।।


 मन जब न लगे (साधना) में, यह उन्नति की पहचान नहीं।

 अंतर में जब घबराहट होगी, मंजिल प्रभु की होगी आसान।।


 प्रतिकूल परिस्थितियाँ जब आकर घेरे, असली परख तब तेरी होगी।

 उत्थान गर चाहता इस जीवन में, (तितिक्षा)1 को तू दे दे स्थान।।


अपमान से तप की वृद्धि संभव, (सम्मान) से होता इसका नाश।

"नीरज" विष मानकर सम्मान को तजना, आत्म उन्नति का तब होगा भान।।

1-तितिक्षा--तप व सहनशीलता।


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