चित्त व मन।
चित्त व मन।
जीवन सुंदर उनका है बनता, जिनको शुद्ध ज्ञान का बोध है होता।
वह दुर्लभ बूटी, अध्यात्म कहलाती, सर्वांगीण विकास मानव का होता।।
अध्यात्म ज्ञान तुल्य सम दीपक, प्रकाशित कर फैलाता आनन्द है।
ज्ञान सुलभ समर्थ गुरु से होता, मिलता उनसे परमानंद है।।
मन की लगाम को कस के रखना, बंधन और मोक्ष का कारण है बनता।
आत्म उन्नति वही कर पाता, हृदय शुद्ध व पवित्र जो है रखता।।
विषय भोगों में लिप्त अशुद्ध मन रहता, विष का कीड़ा विष में ही रहता।
गलत कर्मों को भी सही समझता, मन के वशीभूत ही सब करता।।
चित्त ही विचारों का है स्वामी, शान्त चित्त इसको करना होगा।
कर्म इंद्रियाँ वही हैं करती, मन की लगाम को कसना होगा।।
संपर्क कर ले वीतराग पुरुष का, प्रेयश का मार्ग जो बतलाते।
कर्ता- पन का तुझे भान न होगा, अहंकार को दूर हैं भगाते।।
कर्म, उपासना, ज्ञान के जरिए, असली आत्म स्वरूप हैं दिखलाते।
चित्त, बुद्धि, निश्चल वह करते, कृपा कर तुझको पूर्ण हैं बनाते।।
पवित्र वाणी देती अंतर्ज्ञान की पुष्टि, शांति का अनुभव करता है।
गुरु की समीपता "नीरज" तू कर ले, व्यर्थ ही क्यों भटकता है।।
