क़ल्ब
क़ल्ब
कितनी ही गहराईयो में उतर जाए भला कोई,
किसी का मर्ज़ कोई महसूस कर नहीं सकता।
किसी के सामने तुम हर कमाल करके दिखला दो,
वो अपना क़ल्ब किसी कीमत निकाले रख नही सकता।
यह मौजज़े होते नहीं उसके साथ जो,
अपने क़ल्ब को ज़प्त करके चल नहीं सकता।
वो जिसके क़ल्ब में गुरूर का इतना सा ज़र्रा भी हो,
खुदा की राह में पूरे दिल से चल नहीं सकता।
जो सबको देकर अपना हाथ खाली करता हो,
खुदा उसकी हथेली खाली कभी रख नहीं सकता।
क़ल्ब उसे देने का कभी सोच भी मत लेना,
जो अपना क़ल्ब तुमहारे सामने हरगिज़ रख नहीं सकता।
फक़त खुदा की रहमत का साया है अगर तुम पर,
कोई बाल भी बाका तुमहारा कर नहीं सकता।