मां के लाल
मां के लाल
मां के लालों ने लाल मां का आंचल किया ,
कड़ियां दासता की तोड़ दी ,
आजादी से मां का श्रृंगार किया ।
रूप सदा ये सजा रहे ,
श्रृंगार सदा ये बना रहे ,
ध्यान इसका रखने को
लाल मां के प्रहरी बने ।
चलती है जब गर्म हवाएं
प्रहरी वो पर्वत बन जाते हैं ,
घिरते है बर्फीले तूफान
सांसो से अपनी थाम लेते हैं ।
सोते हैं हम चैन से ,
वो नींद को नींद सुलाते है ।
स्वतंत्र हवाएं बहती रहे ,
जीवन हमारा उन्मुक्त रहे ,
वो आजादी का मोल चुकाते हैं ।
तिरंगे की शान में
रक्त से तिलक लगाते हैं ,
वंदे मातरम् के उदघोष से
शत्रु को थर्राते है ।
वंदे मातरम् ।
