साथी अनोखा
साथी अनोखा
किया आविष्कार उसने कुर्सी का ऐसी,
जिस पर बैठा कर मरीज़ को जान लेता था,
वह शरीर के भीतर का सब हाल,
बता देती कुर्सी सच सच सब, न ज़्यादा न कम।
है यह साथी अनोखा डाक्टर का,
डाक्टर से भी बड़ा डाक्टर,
दिल में है ख़राबी या गुर्दों में,
या फिर है गड़बड़ी मस्तिष्क में,
है सच में ही बीमार या बना रहा केवल बहाना,
दस मिनट में रख देता खोल के सारा चिट्ठा।
आ जाता लिख कर कम्प्यूटर पर क़िस्सा सारा,
हो जायेगा ठीक दवा से या फ़िर करनी पड़ेगी चीड़ा फाड़ी,
हो सकता बदलना पड़ जाये ह्रदय या फिर गुर्दा मरीज़ का,
बता देती कुर्सी सच सच सब, न ज़्यादा न कम।
कोई कहता इसे जादुई कुर्सी,
तो कोई डाक्टर का भी डाक्टर,
कोई डरता इस कुर्सी से,
तो कोई करता प्यार।
जिस डाक्टर ने किया आविष्कार इसका,
वह बुलाता इसे साथी मेरा अनोखा।
