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Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

सांझ

सांझ

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बुल बुले सोंधी साँझ के 

कितने मनभावन दूर

क्षितिज तले दो मिल रहे

साँझ- निशा का मिलन मधुर।


आलिंगन विरह-मिलन 

जैसे छूट रहे प्रेमीयों के हाथ 

चिर हास-अश्रुमय आनन

रूप, रंग, रज, सुरभि, मधुर।


भर कर मुकुलित अंगों में

शाम सजी केसरिया कुंदन 

जवारात ओढ़े चुनर

क्रीड़ा, कौतूहल, कोमलता।


छलके नीशा मन आँगन 

मोद, मधुरिमा, हास, विलास,

नीशा की मृदु-लाली में सजे

उन्माद भरे अंतरतल में।


ढलती शाम की आगोश में 

नीशा की जवानी घुलती है

मधुर मिलन की बेला में 

बिरहन शाम भी रोती है।


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