साँच को आँच नहीं
साँच को आँच नहीं
साँच कहूंँ तो मारा जाऊं,
बिन कहीं रह नहीं पाऊं
हे रघुनाथ त्रिलोकीनाथ,
सच का अपना अलग यथार्थ,
सच का अपना अलग औचित्य।
सच कण कण में बसे,
सच में बसे मसीह।
सच जगत में है बलवान,
झूठ रहे हमेशा परेशान।
सच अंधेरे में रोशन करें
झूठ करे घनघोर अंधेरा
साथसे लक्ष्य प्राप्त होता है
सच बोले मन तृप्त होता है
हम साधारण इंसान भला
झूठ क्यू बोलूं भला
सच जान के जब मैं चला,
झूठ के आंच से भला मै क्यूं डरा।
सच जीवन को प्रशस्त करत है,
झूठ जीवन करत अंधेर।
सच के बल पे धर्म जीते है,
झूठ के बल पे रावण बने पतित
सच में रमते देवता झूठ में बसे चंडाल।
सच बोले ज्ञानी बने झूठ बोले बने मूढ।
