साज की पिटाई
साज की पिटाई
साज समझकर कौन पीट रहा है मुझे
कौन समझ रहा है अपने आप को साजिंदा
मुझे बार बार ठोक पीटकर कौन
अपने आपको बेहतर साबित करने पर तुला है
और तारीफ बटोर रहा है
मुझे तकलीफ हो रही है
मैं अपमानित हो रहा हूं
तुम्हें लगता होगा कि तुम मुझसे सुर ताल निकाल रहे हो
असल में ये अलग अलग आवाजें मेरे रोने की हैं
तुम्हारा हुनर नहीं इसमे
ऐसे नहीं तो ऐसे समझें लोग
तुम मेरा रुदन, आह, कराह
लेकिन तुम तो वाह वाह कर
दूसरों का मन बहला रहे हो
और अपना पेट पाल रहे हो, मान, सम्मान के साथ
संगीतज्ञ महोदय
जिसे तुम साधना कहते हो
असल में मेरी चीख़ पुकार है
सुनने वालों के पास कान अच्छे हैं
तुम्हारे हाथों में हुनर
और मेरे भाग्य में पिटना.
