साहिल
साहिल
हम जो खड़े हुये थे समंदर के साहिल पर
वो भी आ गये फिर दरिया से निकल कर
पुछ जब कि आपने दिल की गहराई पा लिया
कहने लगे कि तुम बिन ये दिल किस काम का
हम जो खड़े हुये थे धरा की साहिल पर
वो भी आ गये फिर आसमां से उतर कर
पूछा जब कि आपने वो शोहरत पा लिया
कहने लगे कि तुम बिन ये ऊँचाइया किस काम की
हम जो खड़े हुये थे आसमान के साहिल पर
वो भी आ गये फिर धरती को छोड़ कर
पूछा जब कि आपने तो ब्रह्मांड को पा लिया
कहने लगे कि तुम बिन संसार किस काम का।