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Mahi Aggarwal

Romance

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Mahi Aggarwal

Romance

रुठी रुठी सी

रुठी रुठी सी

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वो मुझसे कुछ यूँ रुठी-रुठी है

बातें नहीं करती पर मिलती रहती है।


होठों को ताले लगा आँखों से वो कहती है

शिकायतों का पुलिंदा बना रख जाती है।


चैटिंग के पन्नों पर सब कह जाती है

सपनों में वो आके, बस मुस्कुराती है।


रोको तो वो पीठ दिखाती है

पलट पलट कर आगे जाती है।


मासूम सा मुँह बना कर फिर इतराती है

ये कैसा अंदाज सनम का, क्यूँ उलझाती है।


अपना बना कर भी अपनापन नहीं दिखाती है

उनकी यही अदा तो और और दिवाना बनाती है।


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