रुको,जरा सोचो।
रुको,जरा सोचो।
क्या लाये थे,
क्या लेकर जाना,
जरा ठहरना,
एक पल सोचना,
क्या पूरा हो पाया,
वह उद्देश्य,
जो लेकर आये थे,
इस वसुधा पर,
क्यों फैलाये,
कुछ राहो में काँटे,
फिर काँटे चुभने
की शिकायत क्यों,
आये थे
प्रेमरस बोने,
फिर नफरत
फैलाया क्यों,
आये थे कुछ
धरा को देने,
फिर बटोरने में
जुट गए क्यों,
आये थे एक
कर्तव्य पथ पर,
फिर दूजे के अधिकार
का हनन क्यों
क्या थे
और क्या हो गए
बढ़ रहा है
जीवन अपनी गति से,
आ रहा वापसी का समय भी,
तो क्यों न चेत जाए अभी भी,
कुछ करें सदुपयोग,
निज प्रतिभा का भी,
कुछ लोक कल्याण में,
रुके और सोचे जरा,
क्या पूरा हुआ,
जीवन उद्देश्य
नहीं, तो जुट जाएं
वसुधा के निर्माण में,
नवयुग के निर्माण में,
कुछ अपने भी निर्माण में,
बना एक प्रेम का दरिया,
जो अनवरत प्रवाहित हो,
युगों युगों तक,
कर दर्शन कण कण में
अब
हर जन का कल्याण करें,
सभी को प्रणाम करें,
बस आत्म कल्याण करें,
बस आत्म कल्याण करें।।