रुदन(एक बेटी की अंतरात्मा का)
रुदन(एक बेटी की अंतरात्मा का)
एक रूह और सिसक कर बाहर आई है,
फिर से एक बेटी ने बेटी होने की सज़ा पाई है।
विश्वास था कि दूर देश में अपने देश का नाम रोशन करेगी
पर कहां जानती थी कि वो किसी दरिंदे की दरिंदगी सहेगी
वो निकली थी विश्वास के साथ कि अब वक्त बदल रहा है
अंजान इस बात से कि उसका विश्वास ही उसे छल रहा है
कह कर निकली होगी घर से कि मां, मैं अभी चलती हूं,
कुछ सपने पूरे करने को इस चारदीवारी से निकलती हूं
पर वो नहीं जानती थी कि ये "चलती हूं" शब्द उसे ले ही जाएगा,
पिता के सीने को छलनी और मां के आंचल को
खाली कर जाएगा,
स्त्री हूं, नहीं जानती थी कि जीवन में एक मोड़ ऐसा आएगा,
जब एक बेटी की "मां" होने का डर मुझे भी सताएगा,
क्यों, हर बार डर डर कर चलना जरूरी होता है?
क्यों दरिंदों के कारण एक बेटी को जीवन खोना पड़ता है?
शायद ये प्रश्न और दुविधा उस वक्त स्वत: सुलझ जाएगी,
जब देश की हर नारी देवी रूपी सम्मान पाएगी,
और अगर कोई दानव किसी देवी पर बुरी नज़र डालेगा,
तो उसी देवी की क्रोधाग्नि से उसी पल वो भस्म हो जाएगा।