रोटी
रोटी
दाने-दाने पर लिखा है,
खाने वाले का नाम,
यह जुमला है,
या खुदा का पैगाम।
जनाब रोटी तो बिकती है,
भरे बाजार,
उघड़े तन में टिकती हैं।
लाचार कंधों के,
बोझ से हाँफती हैं,
ना जाने कितने दिन,
फाँकों में फाँकती है,
गरीब लाचार बेबस,
आँखों से ताकती हैं।
रोटी बिकती है जनाब,
किसी किसी के लिए तो,
महज बन जाती,
हैं एक ख्वाब ।
लाचारी में तंज कसती,
पहुँच का दंभ भरती,
बोटी-बोटी नुचवाती हैं रोटी।
खून का संगीन पाप करवाती,
हर गुनाह से मुकर जाती हैं रोटी,
कूड़े के ढेरों में,
जानवरों-सा मुँह मरवाती,
झूठी पतलें भी चटवाती हैं रोटी।
दाने-दाने पर लिखा है,
खाने वाले का नाम,
यह जुमला है,
या खुदा का पैगाम।
किसान के हल से सोने-सी,
चमकती हैं,
बराबर हिस्सों में बँटती,
हीरे-सी दमकती है रोटी।
मत मजबूरी बनाओ जनाब,
क्षुद्धा की आग में बहुत,
जरूरी होती हैं रोटी।
दाने-दाने पर लिखा है,
खाने वाले का नाम,
यह जुमला है,
या खुदा का पैगाम।