रंगों की दुनिया
रंगों की दुनिया
चौराहे की वो खिड़की
जिस पर चमकती है बत्तियां
कभी लाल कभी पीली या हरी
यूँ ही नहीं होते हैं रंग
रंग बहुत रंगीन होते हैं
कभी कभी संगीन होते हैं
हरा रंग गति देता है फिर से
तो लाल सिखाता है ठहरना
कुछ पल भागती दौड़ती सी ज़िन्दगी
जीने लगती है ख़ुद को
विराम नहीं है ये लाल प्रतीक
विश्राम है तनिक सा
कि देख सको दूर तलक
कहाँ भागे जा रहे हैं हम
सबको पीछे छोड़ते
इस अंधी सी दौड़ में
सबको साथ लेना ही तो जीवन है
कुछ क़दम हम चलें
कुछ क़दम रुकें
कुछ क़दम तुम चलो
कुछ कदम रुको
सह के इस भाव में ही
मैं और तुम से
"हम" बन जाते हैं
हम सबकी इस कदमताल से
हम हमकदम बन जाते हैं।
