रिश्ता
रिश्ता


मन के जुलाहे ने
कच्चे धागों से रिश्ता बुना
उम्र निकल गयी गांठे बांधते-बांधते
मुड़ के देखें तो लगता है
सारी जीवन यात्रा
उन गांठो पर चढ़ते उतरते ही गुज़री
उसमें सीधे ताने बाने की गुंजाइश ही न थी
बुनते टूटते धागों से
खड्डी चलाते संस्कारों के हाथ भी दुखने लगे
खूबसूरत फूल बूटों की जगह
बार बार टूटते धागे थे
जगह जगह, बंधी गांठो के बाद भी
दो सिरे अलग अलग झांकते रहे।