थाम कर मेरा हाथ
थाम कर मेरा हाथ
थाम कर मेरा हाथ,
प्रियतम भी था साथ,
एक रोज बैठी थी मैं,
नदी के किनार पे ।
प्रेम का मधुर गीत,
गाते गाते झूम उठे,
मन की मधुर धुन,
बजी थी सितार पे ।
कोयल की कुहू कुहू,
पपीहे की पिहु पिहु,
प्रेम की प्रकृति थी,
मौसम की बहार पे।
हवाएँ भी छू रही थी,
रह रह कर हमें,
पुरवाई ताकती थी,
प्रीत की पुकार पे।

